What is a paddy transplanter machine, Where to buy

भारतीय किसान अश्विनी कुमार बिसेन की प्रेरणादायक कहानी जानें, जिन्होंने कुबोटा पैडी ट्रांसप्लांटर मशीन का उपयोग कर धान की खेती में क्रांति ला दी है। इस मशीन ने न केवल श्रम और लागत में भारी कमी की है, बल्कि उत्पादन दक्षता को भी अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ा दिया है, जिससे उनका परिवार बिना बाहरी मदद के 29-30 एकड़ भूमि का प्रबंधन कर पा रहा है।

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paddy (धान) की खेती में क्रांति: कुबोटा राइस ट्रांसप्लांटर से किसान अश्विनी कुमार बिसेन की सफलता की कहानी

( paddy )यह वीडियो मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के एक दूरदर्शी और प्रगतिशील किसान, श्री अश्विनी कुमार बिसेन के अभिनव कृषि अनुभवों का एक विस्तृत और प्रेरणादायक चित्रण प्रस्तुत करता है। पिछले आठ वर्षों से कुबोटा राइस ट्रांसप्लांटर मशीन का उपयोग करते हुए, बिसेन जी ने न केवल अपनी खेती की दक्षता में अभूतपूर्व वृद्धि की है, बल्कि पारंपरिक धान रोपण के तरीकों में एक बड़ा बदलाव भी लाया है। यह गहन साक्षात्कार मशीन की तकनीकी कार्यप्रणाली, इसके आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों, और सबसे महत्वपूर्ण, बिसेन परिवार के जीवन पर इसके परिवर्तनकारी प्रभाव को उजागर करता है। यह कहानी भारतीय कृषि में मशीनीकरण और आधुनिक तकनीकों को अपनाने की क्षमता का एक सशक्त उदाहरण है। paddy


परंपरागत खेती से आधुनिक मशीनीकरण तक का सफर

भारत में धान की खेती सदियों से श्रम-गहन कार्य रहा है, जिसमें रोपण से लेकर कटाई तक भारी शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। पारंपरिक तरीकों में मजदूरों की बड़ी संख्या की आवश्यकता होती है, खासकर रोपण के मौसम में, जब समय पर काम पूरा करना महत्वपूर्ण होता है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन और कृषि मजदूरों की बढ़ती लागत ने किसानों के लिए चुनौतियां खड़ी की हैं। इसी पृष्ठभूमि में, अश्विनी कुमार बिसेन जैसे किसानों ने आधुनिक कृषि मशीनों को अपनाकर इन चुनौतियों का समाधान निकाला है।

बिसेन जी बताते हैं कि कुबोटा राइस ट्रांसप्लांटर अपनाने से पहले, उनके परिवार को अपनी 29-30 एकड़ धान की भूमि में रोपण कार्य के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों पर निर्भर रहना पड़ता था। यह न केवल एक महंगा उद्यम था, बल्कि कुशल मजदूरों की उपलब्धता भी एक बड़ी समस्या थी। अक्सर, मजदूरों की कमी के कारण रोपण में देरी होती थी, जिससे फसल की पैदावार प्रभावित होती थी। मशीन के आने के बाद, यह पूरा परिदृश्य बदल गया। अब उनका परिवार, जिसमें वह, उनके पिता और भाई शामिल हैं, केवल एक व्यक्ति के संचालन से ही पूरी भूमि का प्रबंधन कर सकते हैं। यह आत्मनिर्भरता और श्रम निर्भरता में कमी ग्रामीण कृषि परिदृश्य के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है।


कुबोटा राइस ट्रांसप्लांटर की प्रभावशाली दक्षता और लागत-प्रभावशीलता

कुबोटा मशीन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता इसकी असाधारण दक्षता और लागत-प्रभावशीलता है। बिसेन जी विस्तार से बताते हैं कि यह मशीन कितनी तेज़ी से और कुशलता से काम करती है:

  • अभूतपूर्व गति: मशीन लगभग 60 डिसमिल प्रति घंटे की दर से धान की रोपाई कर सकती है। इसका मतलब है कि एक एकड़ भूमि पर धान की रोपाई करने में केवल दो घंटे का समय लगता है। इसकी तुलना में, मैन्युअल रोपण में प्रति एकड़ कई मानव-दिनों का समय लगता है, जो रोपण के व्यस्त मौसम में एक बड़ी बाधा बन सकता है।
  • नाटकीय लागत बचत: वित्तीय दृष्टिकोण से, मशीन एक गेम-चेंजर है। बिसेन जी गणना करके बताते हैं कि जहां प्रति एकड़ मैन्युअल रोपण में ₹8,000 तक का खर्च आता है (इसमें मजदूरों की दिहाड़ी, भोजन और अन्य खर्च शामिल हैं), वहीं कुबोटा मशीन से यही काम केवल ₹200-300 के पेट्रोल खर्च में पूरा हो जाता है। यह प्रति एकड़ लगभग ₹7,700 की सीधी बचत है, जो धान की खेती में मुनाफे को काफी बढ़ा देती है। यह बचत छोटे और मध्यम किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें वित्तीय स्थिरता प्रदान करती है।
  • पानी की बचत और पर्यावरण लाभ: मशीन द्वारा की गई सटीक रोपाई के कारण पानी की खपत भी कम होती है। बिसेन जी बताते हैं कि मशीन से रोपाई के बाद खेत को बार-बार पानी देने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे पानी की महत्वपूर्ण बचत होती है, जो जल-संकट वाले क्षेत्रों के लिए एक बड़ा पर्यावरणीय लाभ है।

वैज्ञानिक रोपण और उन्नत फसल स्वास्थ्य

कुबोटा राइस ट्रांसप्लांटर सिर्फ एक तेज मशीन नहीं है; यह एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बेहतर है। यह पारंपरिक बेतरतीब रोपण के विपरीत, धान के पौधों को एक विशिष्ट, इष्टतम पैटर्न में लगाती है:

  • सटीक रिक्ति: मशीन पंक्तियों के बीच 11 इंच और पौधों के बीच 4 इंच की सटीक दूरी बनाए रखती है। यह समान रिक्ति प्रत्येक पौधे को व्यक्तिगत रूप से पनपने के लिए पर्याप्त जगह, धूप और पोषक तत्व प्राप्त करने की अनुमति देती है।
  • रोग नियंत्रण और बेहतर विकास: बिसेन जी बताते हैं कि यह सटीक रिक्ति “माहू” (एफिड्स) जैसे सामान्य कीटों और बीमारियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब पौधे बहुत घने होते हैं, तो हवा का संचार कम हो जाता है, जिससे नमी बढ़ती है और फंगल रोगों और कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। मशीन द्वारा लगाई गई उचित दूरी स्वस्थ पौधों के विकास को बढ़ावा देती है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम होती है और फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • नर्सरी तैयारी में आसानी: मशीन के लिए नर्सरी की तैयारी भी पारंपरिक तरीकों से अलग है। धान की पौध को विशेष रूप से पॉलीथीन शीटों पर उगाया जाता है। यह विधि पौधों को जड़ों को नुकसान पहुँचाए बिना आसानी से उठाने और मशीन के ट्रे में लोड करने की सुविधा प्रदान करती है। यह न केवल श्रम बचाता है बल्कि पौधों को रोपण के दौरान लगने वाले “शॉक” को भी कम करता है, जिससे उनकी जीवित रहने की दर बढ़ जाती है।

जापानी इंजीनियरों का दौरा: एक वैश्विक पहचान

बिसेन जी की सफलता और कुबोटा मशीन के उनके कुशल उपयोग ने न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया। यह वीडियो एक दिलचस्प घटना का भी उल्लेख करता है: उनकी मशीन के बारे में एक पिछले वीडियो के जापान में वायरल होने के बाद, कुबोटा कंपनी के जापानी इंजीनियरों का एक दल स्वयं बिसेन जी के खेत का दौरा करने आया।

यह घटना कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का उदाहरण: यह दर्शाता है कि कैसे भारतीय किसान आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों को सफलतापूर्वक अपना रहे हैं और उनका कुशलता से उपयोग कर रहे हैं।
  • किसान की विशेषज्ञता की मान्यता: यह बिसेन जी की विशेषज्ञता और उनके अनुभव के महत्व को भी रेखांकित करता है। उनके व्यावहारिक ज्ञान ने स्वयं मशीन के निर्माताओं का ध्यान खींचा, जो उनकी उपयोगिता और प्रभावशीलता का प्रमाण है।
  • प्रेरणा का स्रोत: यह घटना अन्य भारतीय किसानों के लिए एक बड़ी प्रेरणा है कि वे भी आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाकर अपनी खेती को अधिक लाभदायक और टिकाऊ बना सकते हैं।

मशीन का रखरखाव और वित्तीय पहलू

मशीन खरीदने का निर्णय किसी भी किसान के लिए एक महत्वपूर्ण निवेश होता है। बिसेन जी मशीन की खरीद और रखरखाव के पहलुओं पर भी प्रकाश डालते हैं:

  • सरकारी सब्सिडी: मशीन की लागत लगभग ₹2,80,000 से ₹3,00,000 के बीच है। हालांकि, सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी के साथ, यह लागत घटकर लगभग ₹1,50,000 हो जाती है, जिससे यह छोटे और मध्यम किसानों के लिए अधिक सुलभ हो जाती है। सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर किसान आधुनिक कृषि उपकरणों में निवेश कर सकते हैं।
  • कम रखरखाव: बिसेन जी बताते हैं कि मशीन को पहले तीन से चार वर्षों तक न्यूनतम रखरखाव की आवश्यकता होती है। इसके बाद, लगभग 400 घंटे के संचालन के बाद कुछ हिस्सों पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है। यह कम रखरखाव लागत और उच्च विश्वसनीयता मशीन को एक व्यवहार्य दीर्घकालिक निवेश बनाती है।
  • दीर्घायु और स्थायित्व: मशीन की मजबूती और स्थायित्व भी महत्वपूर्ण है, जो लंबे समय तक इसका उपयोग सुनिश्चित करता है और किसानों को अपने निवेश पर अच्छा रिटर्न प्राप्त करने में मदद करता है।

पारिवारिक भागीदारी और आत्मनिर्भरता का संदेश

यह वीडियो केवल एक मशीन के बारे में नहीं है; यह एक परिवार की कहानी भी है जिसने आधुनिक तकनीक को अपनाकर अपनी खेती को आत्मनिर्भर बनाया है। बिसेन जी बताते हैं कि उनका पूरा परिवार, जिसमें उनके पिता और भाई शामिल हैं, धान रोपण की प्रक्रिया में शामिल होते हैं। मशीन के संचालन की सादगी ऐसी है कि एक ही व्यक्ति आसानी से इसका संचालन कर सकता है। यह परिवार के सदस्यों को एक साथ काम करने और एक टीम के रूप में कार्य करने का अवसर भी प्रदान करता है, जिससे उनके बंधन मजबूत होते हैं और खेती का काम कम बोझिल लगता है।

यह पारिवारिक भागीदारी न केवल श्रम लागत को बचाती है, बल्कि परिवार के भीतर कौशल हस्तांतरण को भी सुनिश्चित करती है। युवा पीढ़ी भी कृषि में अधिक रुचि ले सकती है जब वे देखते हैं कि आधुनिक मशीनें काम को कितना आसान और कुशल बना सकती हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को खेती से जोड़े रखने में मदद कर सकता है।


निष्कर्ष: कृषि का भविष्य और प्रेरणा का स्रोत

अश्विनी कुमार बिसेन की कहानी भारत में कृषि के भविष्य के लिए एक शक्तिशाली संदेश है। उनका अनुभव स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कैसे आधुनिक कृषि मशीनरी न केवल दक्षता बढ़ा सकती है और लागत कम कर सकती है, बल्कि किसानों के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार कर सकती है। यह उन्हें अधिक आय अर्जित करने, कम शारीरिक श्रम करने और अपने समय का बेहतर प्रबंधन करने में मदद करता है।

वीडियो का समापन बिसेन जी के प्रबल समर्थन के साथ होता है, जो मशीन से अपनी 100% संतुष्टि व्यक्त करते हैं। उनकी संतुष्टि इसकी दक्षता, लागत-प्रभावशीलता और संचालन में आसानी से उपजी है। उनका संदेश स्पष्ट है: यदि किसान आधुनिक तकनीकों को अपनाते हैं, तो वे अपनी खेती को अधिक टिकाऊ, लाभदायक और कम तनावपूर्ण बना सकते हैं। यह वीडियो निश्चित रूप से उन किसानों के लिए एक प्रेरणा है जो अपनी कृषि पद्धतियों को उन्नत करने और आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ने पर विचार कर रहे हैं।https://youtu.be/FmPAjaVYH6w?si=rbQIERaRis72Ps7X