जब छत्तीसगढ़ के जंगल क्षेत्र में घूमते हैं ।तो सबसे पहले वन सम्पदा के बारे में बात करते है, क्योंकि छत्तीसगढ़ का 70% क्षेत्र जंगलों से ही घिरा हुआ है। यहां गांव तथा घर कि बनावट इतनी अच्छी होती है। कि पूछो मत देखते ही बनता है।उसी प्रकार हम एक गांव में है ये गांव बाबूपारा जिला कोरबा छत्तीसगढ़ है। छत्तीसगढ़ के गांव तथा घर की बनावट बहुत सुंदर है।ऐसे बाबूपारा के किसान लाल चंद पैंद्रो के घर हमने रात्रि विश्राम किया। हमने देखा कि लाल चंद्र घर के पीछे हिस्से में मस्त तरीके तथा परंपरा गत खेती करते हैं। तथा देशी बकरी भी पालन करते हैं। इसके बाड़ी में लौकी, बरबटी,करेला ,भिंडी और भाटा है।जो इस साल लौकी अच्छी फसल थी और यह परंपरा गत पुरातन शैली से ही खेती करते हैं। सिर्फ यह ढेखरा से ही लौकी की अच्छी फसल उत्पादन करते है,और यह भाई साहब ना कोई भी रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं करते है। यह सिर्फ गोबर खाद का उपयोग करते हैं और ताजुब की बात है, कि आज भी यहां पर कांवर से ही गोबर खाद लाने का काम किया जाता है।ये सोचने वाली बात है। क्योंकि शहरों में कांवर देखना क्या? इसका नाम को भी नई जानते कि कांवर क्या है? लेकिन जंगल की क्षेत्रों में कांवर का उपयोग अभी भी हो रहा है। और पहले जमाने में कांवर से ही पानी लाने और ले जाने का काम किया जाता था लेकिन आज कल के लोग तो साइकिल से ला लेते है। लाल चंद्र पेंद्रो भाई साहब ने अपने घर को इस तरह से बनाया है। कि शहर के लोग आएंगे तो पहचान नहीं पायेंगे कि यह घर पक्की का है या कच्ची का है। इस भाई साहब घर को पूरा शहर की तरह फैसनेबल बना दिया है। और रही बात यह है कि जंगल के क्षेत्रों के गांव में तो कोई(AC) और कूलर की जरूरत ही नहीं पड़ता है। क्योंकि यह की ताजा हवा तथा शाँत वातावरण तथा पेड़-पौधों से घिरा हुआ घर रहता है। जिससे गर्मी का तो पता ही नहीं चलता और यह भाई साहब ना सिर्फ जैविक खाद का ही प्रयोग करते है जिससे अच्छी सब्जी प्राप्त होती है। जिसके खाने से मनुष्य स्वस्थ रहता है।क्योंकि रसायनिक खाद का उपयोग करने से उस दवाई का असर भी सब्जी तथा फलों में भी आ जाता है। उसे खा कर कई प्रकार की बीमारी हो सकती है इसके लिए हमको भी जैविक खाद का ही उपयोग करना चाहिए । अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करे धन्यवाद।