भेड़ की नस्लें,भेड़ क्या खाती है?

छत्तीसगढ़ में पीढ़ियों से भेड़-बकरी पालन कर रहे किसान गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। चराई भूमि की कमी, ऊन के लिए कम मांग और सरकारी सहायता का अभाव उनके व्यवसाय को प्रभावित कर रहा है, जबकि पशुधन पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएं मौजूद हैं। इस वीडियो में एक किसान परिवार की कहानी के माध्यम से उनकी समस्याओं और संभावनाओं को जानें।

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छत्तीसगढ़ में भेड़-बकरी पालन: एक प्राचीन व्यवसाय की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

यह वीडियो छत्तीसगढ़ के एक किसान परिवार की कहानी बताता है, जो पीढ़ियों से भेड़ और बकरी पालन से जुड़ा है। ओम प्रकाश औसर द्वारा प्रस्तुत यह वीडियो, कौही गाँव के जीवन लाल धनकर जैसे किसानों के अनुभवों को सामने लाता है, जो इस पारंपरिक व्यवसाय को जारी रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

पारंपरिक तरीके और आधुनिक समस्याएँ

वीडियो में भेड़ की ऊन की कटाई का दृश्य दिखाया गया है, जो मानसून से पहले की जाती है ताकि जानवरों को बीमारियों से बचाया जा सके। कौही गाँव, जो अपनी भेड़ और बकरियों के लिए जाना जाता है, खारुन नदी के किनारे स्थित है और यहाँ एक प्राचीन काली मंदिर और स्वयंभू शिवलिंग मंदिर भी है।

किसान जीवन लाल धनकर बताते हैं कि वे साल में तीन बार भेड़ों की ऊन काटते हैं। एक समय था जब इस ऊन से कंबल (कमरा) बनाए जाते थे जिनकी अच्छी मांग होती थी, लेकिन अब नई पीढ़ी इस काम में रुचि नहीं ले रही है और अक्सर ऊन को फेंक दिया जाता है क्योंकि मेहनत के हिसाब से मुआवजा नहीं मिलता।

चराई की कमी और सरकारी सहायता का अभाव

किसानों को सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक चराई के लिए जमीन की कमी का सामना करना पड़ रहा है। अतिक्रमण और विकास के कारण जानवरों को चराने के लिए जगह ढूंढना मुश्किल हो गया है। सरकारी टीकाकरण जैसे पीपीआर (PPR) लगाए जाते हैं, लेकिन कुछ टीके किसान खुद लगाते हैं। किसानों ने शिकायत की कि उन्हें इस साल सरकार की ओर से पीपीआर का टीका नहीं मिला है।

जानवरों की बिक्री भी एक समस्या है। एक भेड़ लगभग 7,000 रुपये में और एक बकरी 5,000 से 6,000 रुपये में बिकती है। किसानों को अक्सर कम कीमत पर बेचना पड़ता है क्योंकि खरीदार कम होते हैं और स्थानीय व्यापारी स्थिति का फायदा उठाते हैं।

सरकारी योजनाएँ और भविष्य की उम्मीदें

वीडियो में किसान इस बात पर निराशा व्यक्त करते हैं कि उन्हें भेड़ और बकरी पालन के लिए सरकारी योजनाओं या अनुदानों का कोई लाभ नहीं मिला है, जबकि वादे किए गए थे। हालांकि, सरकार वास्तव में बकरी पालन को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी प्रदान करती है। किसान 100 बकरियों की एक यूनिट स्थापित कर सकते हैं, जिसके लिए उन्हें 10 लाख रुपये तक की सब्सिडी मिल सकती है, जिससे वे 8 लाख रुपये तक का लाभ कमा सकते हैं। राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत केंद्र सरकार 10 से 50 लाख रुपये तक की सब्सिडी भी दे रही है।

बाहर से आने वाले बड़े भेड़ों के झुंड (लगभग 1,000 भेड़) भी स्थानीय किसानों के लिए चराई संसाधनों को कम कर देते हैं, जिससे उनकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। वीडियो का निष्कर्ष यह है कि इन पारंपरिक किसानों को उचित सहायता और लाभ मिलना चाहिए जो सदियों से इस व्यवसाय को बनाए हुए हैं।