( धान )Maintenance and Operation of paddy transplanter
छत्तीसगढ़ में धान की खेती में क्रांति: पैडी ट्रांसप्लांटर मशीन का कमाल
परिचय
छत्तीसगढ़, जिसे “धान का कटोरा” कहा जाता है, में खेती की पारंपरिक पद्धतियों के बीच एक नई तकनीक तेजी से अपनी जगह बना रही है। राजनांदगांव जिले के छुरिया ब्लॉक के चांदो गाँव के एक प्रगतिशील किसान, विवेक वैष्णव (रिंकू दाऊ), ने पैडी ट्रांसप्लांटर मशीन का उपयोग करके धान की खेती में एक सफल प्रयोग किया है। इस वीडियो में, ओम प्रकाश अवसर हमें विवेक के खेतों का दौरा कराते हैं और इस मशीन के आश्चर्यजनक परिणामों को विस्तार से दिखाते हैं, जो न केवल लागत को कम करती है बल्कि उपज बढ़ाने में भी कारगर साबित हुई है।
प्रारंभिक आशंकाओं से परे: खेत का सच
वीडियो की शुरुआत में, विवेक वैष्णव उन आम शंकाओं का समाधान करते हैं जो अक्सर मशीन द्वारा की गई रोपाई को लेकर होती हैं। कई किसानों को लगता है कि मशीन से रोपाई करने पर पौधों के बीच की दूरी बहुत अधिक हो जाती है, जिससे खेत खाली-खाली दिखता है और खरपतवार उगने की आशंका बढ़ जाती है। विवेक अपने लहलहाते खेत को दिखाते हुए इस धारणा को तोड़ते हैं। पर वे बताते हैं कि शुरुआत में खाली दिखने वाला खेत, पौधों के विकास के साथ पूरी तरह से भर गया है और अब हाथ से लगाई गई फसल से भी अधिक घना और स्वस्थ दिख रहा है।
तकनीकी सटीकता और फसल का स्वास्थ्य
इस मशीन की सफलता का एक बड़ा कारण इसकी तकनीकी सटीकता है। विवेक बताते हैं कि उन्होंने पंक्ति से पंक्ति की दूरी 11 इंच और पौधे से पौधे की दूरी 6 इंच पर निर्धारित की थी। इस वैज्ञानिक दूरी का परिणाम यह हुआ कि प्रत्येक पौधे को बढ़ने, फैलने और प्रकाश संश्लेषण के लिए पर्याप्त जगह मिली। इसका सबसे बड़ा प्रमाण फसल के कल्लों (tillers) की संख्या में देखने को मिलता है। पर प्रस्तुतकर्ता एक ऐसे पौधे को दिखाते हैं जो 40 दिन से अधिक पुरानी नर्सरी से लगाया गया था, जिसे आमतौर पर कमजोर माना जाता है, फिर भी उस एक पौधे में 22 स्वस्थ कल्ले फूटे हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि सही तकनीक से कमजोर शुरुआत के बावजूद फसल कितनी मजबूत हो सकती है। विवेक को इस खेत से प्रति एकड़ 20 क्विंटल से अधिक उपज की उम्मीद है, जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
लागत में भारी कटौती: आर्थिक लाभ
इस तकनीक का सबसे आकर्षक पहलू इसकी लागत प्रभावशीलता है। विवेक वैष्णव के अनुसार, मशीन से एक एकड़ में धान की रोपाई का कुल खर्च लगभग ₹1000 आता है, जिसमें तीन मजदूरों का वेतन और ट्रैक्टर का ईंधन शामिल है। इसकी तुलना में, यदि यही काम हाथ से करवाया जाता है, तो प्रति एकड़ लागत ₹7,500 से ₹8,000 तक पहुँच जाती है। इसका अर्थ है कि किसान प्रति एकड़ सीधे-सीधे ₹6,500 से ₹7,000 की बचत कर सकता है। यह बचत छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक सहारा है।
उर्वरक का कुशल उपयोग
यह तकनीक न केवल श्रम और पैसे की बचत करती है, बल्कि उर्वरकों के कुशल उपयोग को भी बढ़ावा देती है। विवेक ने बताया कि उन्होंने प्रति एकड़ केवल 25 किलो डीएपी और 30 किलो यूरिया का उपयोग किया, जो कि अन्य किसानों द्वारा उपयोग की जाने वाली मात्रा से काफी कम है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि डीएपी को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से लागू किया गया था, जिससे कम मात्रा में भी पौधों को अधिकतम पोषण मिला। इससे जमीन के स्वास्थ्य की भी रक्षा होती है और खेती की लागत और कम हो जाती है।
मशीनीकरण के बहुआयामी लाभ
वीडियो के अंत में, विवेक मशीन से रोपाई के कई अन्य लाभों को संक्षेप में बताते हैं:
- समय पर रोपाई: मानसून पर निर्भर खेती में समय पर रोपाई महत्वपूर्ण है। मशीन से यह काम तेजी से और सही समय पर पूरा हो जाता है।
- मजदूरों पर निर्भरता में कमी: यह तकनीक खेती में मजदूरों की कमी की समस्या का एक स्थायी समाधान प्रदान करती है।
- अधिक उपज: अनुभव यह बताता है कि मशीन से लगाई गई फसल में हाथ से लगाई गई फसल की तुलना में 5-10% तक अधिक उपज मिलती है।
- मजबूत पौधे: पौधों की जड़ें गहराई तक जाती हैं, जिससे वे मजबूत होते हैं और तेज हवा या बारिश में फसल के गिरने (lodging) का खतरा कम हो जाता है।
निष्कर्ष
यह वीडियो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पैडी ट्रांसप्लांटर जैसी आधुनिक कृषि मशीनें केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि आज की खेती की एक आवश्यकता हैं। यह तकनीक लागत कम करने, मजदूरों पर निर्भरता घटाने, समय बचाने और अंततः उपज बढ़ाकर किसानों की आय में वृद्धि करने का एक सिद्ध और विश्वसनीय तरीका है। विवेक वैष्णव का सफल प्रयोग छत्तीसगढ़ के अन्य किसानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो यह दिखाता है कि सही तकनीक अपनाकर खेती को अधिक लाभदायक और टिकाऊ बनाया जा सकता है।