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मोर रंग दे बसंती चोला,छत्तीसगढ़ी कविता

ये माटी के खातिर होगे, वीर नारायण बलिदानी जी।
ये माटी के खातिर मिट गे , गुर बालक दास ज्ञानी जी॥
आज उही माटी ह बलाहे, देख रे बाबु तोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला॥

ये माटी मा उपजेन बाढ़ेन, ये माटी के खाये हन।
ये माटी कारण भईया मानुस तन ल पाये हन॥
काली इही माटी मिलही, तोर हमर ये चोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बंसती चोला।।

पुरखा हमर ज्ञानी रीहीस अऊ अबड़ बलिदानी जी।
भंजदेव जइसे राजा रीहीस, जे अबड़ स्वाभिमानी जी॥
गुरू घांसी के बेटा अस ग, का होगे हे तोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला।।

डोंगरगढ़ अऊ चनदरपुर छत्तीसगढ़ के शान हे।
राजिम अऊ सिरपुर मा बईठे सऊंहत भगवान हे।।
पुछत रहीथे दंतेश्वरी, का चाही ग तोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला।।

बोली-भाखा ल अपन, हमन ह बिसराये हन।
सिधवा के नाम मा भईया बड़ धोखा हम खाये हन।।
परदेशी मन लूट के जावत हे भर-भर के झोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला।

छत्तीसगढ़ के आन बर, मय बाना उठाय हवं।
अपन बोली-भाखा बर, प्रन मय हर खाय हवं॥
क्रांति के धरके निकले हाबवं मय हर गोला।
मोर रंग दे बनाती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला।।

जड़ लूटिन, जमीन लूटिन, लूटिन खेती-खार रे।
अपने घर मा हम खाथन , परदेसी के मार रे।।
अब लहू डबके होगे , हमरो मन के सोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला।।

रेहेबर जेला घर देये हन, कारोबार जिये बर।
आज उही मन मन बनाये, लूटपाट करे बर।।
महानदी के रेती मा, दफनाबोन हमन वोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला।।

रईपुर ल रायपुर कहि डारिन, दुरुग ल दुर्ग जी।
अक्कल में परदेशी मनके बनगे हन हम मुर्ख जी।।
भुलाके अपन असमिता ल का मिलही ग तोला?
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती।।

नसा-पानी ल तुमन छोड़व, छोड़व बात बिरान के।
दारू हमला तबाह करे हे, बात सुनव सियान के।।
जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ के, मिले हे बाबू तोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला।

पेट पालथन दुनिया के हम छत्तीसगढ़ीया किसान जी।
देश बर लोहा गलाथन,भिलई मा हम जवान जी।।
हमर धरती ल जेन मताही, नई छोड़न ग वोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग बसंती चोला।।

छत्तीसगढ़ ल कहिथे भईया धान के कटोरा जी।
तिहार हमर मन के हरे तीजा अऊ पोरा जी।।
कमरछट के अगोरा रहीथे, छट से काहे मोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला॥

हम छत्तीसगढ़ीया आपस में भाई-भाई आन गा।
मनखे-मनखे एक बरोबर , भेद झन मान गा॥
रहन सबो झिन जुर मिलके कोनो झिन रहव अकेला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला।

मिटबो हम माटी के खातिर, हमर ये बिचार हे।
अपमान होवय माटी मोर, मोला नई स्वीकार हे॥
मुड़ मा कफन बांध निकले हाबय हमर टोला।
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला॥
ओमप्रकाश ष्अवसरष्
पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ी कविता